नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम बहादुर राय की पुस्तक भारतीय संविधान: अनकही कहानी के विमोचन के अवसर पर एक वीडियो संदेश के माध्यम से संबोधित किया।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत में राम बहादुर राय के अपने पूरे जीवन में नए विचारों की खोज करने और समाज के सामने कुछ नया लाने की इच्छा का उल्लेख किया। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि आज विमोचित की गई यह पुस्तक संविधान को व्यापक रूप में प्रस्तुत करेगी। श्री मोदी ने कहा कि 18 जून को ही राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान की लोकतांत्रिक गतिशीलता के पहले दिन के रूप में संविधान के पहले संशोधन पर हस्ताक्षर किए थे। इसे प्रधानमंत्री ने हमारी सबसे बड़ी ताकत बताया।
प्रधानमंत्री ने कहा, हमारा संविधान एक स्वतंत्र भारत की ऐसी सोच के रूप में हमारे सामने आया, जो देश की कई पीढ़ियों के सपनों को पूरा कर सके। उन्होंने उल्लेख किया कि संविधान सभा की पहली बैठक स्वतंत्रता से कई महीने पहले 9 दिसंबर 1946 को हुई थी, जो हमारी संभावित स्वतंत्रता और लोकतंत्र में विश्वास व आस्था को दिखाती है। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा, इससे पता चलता है कि भारत का संविधान केवल एक पुस्तक नहीं है। यह एक विचार, प्रतिबद्धता और स्वतंत्रता में विश्वास है।
प्रधानमंत्री ने उम्मीद व्यक्त की कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि भविष्य के भारत में अतीत की चेतना मजबूत बनी रहे, श्री राय की यह पुस्तक नए भारत के भूले हुए विचारों को याद करने के नए भारत के प्रयास की परंपरा में होगी। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक स्वतंत्रता के इतिहास व हमारे संविधान के अनकहे अध्यायों के साथ देश के युवाओं को एक नई सोच देगी और उनके वचन को व्यापक बनाएगी।
प्रधानमंत्री ने श्री राय की पुस्तक के हवाले से आपातकाल के संदर्भ का उल्लेख करते हुए कहा, अधिकारों और कर्तव्यों के बीच समन्वय ही हमारे संविधान को इतना विशेष बनाता है। अगर हमारे पास अधिकार हैं, तो हमारे कर्तव्य भी हैं और अगर हमारे पास कर्तव्य हैं, तो अधिकार भी उतने ही मजबूत होंगे। यही कारण है कि देश आजादी के अमृत काल में कर्तव्य की भावना और कर्तव्यों पर इतना जोर देने की बात कर रहा है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने संविधान के बारे में व्यापक जागरूकता उत्पन्न करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
उन्होंने आगे कहा, गांधीजी ने कैसे हमारे संविधान की अवधारणा को नेतृत्व दिया, सरदार पटेल ने धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कर भारतीय संविधान को साम्प्रदायिकता से मुक्त किया, डॉ. आंबेडकर ने 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' को आकार देने वाले संविधान की प्रस्तावना में बंधुत्व को शामिल किया और कैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे विद्वानों ने संविधान को भारत की आत्मा से जोड़ने के प्रयास किए, यह पुस्तक हमें ऐसे अनकहे पहलुओं से परिचित कराती है।
प्रधानमंत्री ने संविधान की जीवंत प्रकृति पर जोर देते हुए विस्तार से बताया भारत, स्वभाव से एक स्वतंत्र सोच वाला देश रहा है। जड़ता, हमारे मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं है। संविधान सभा के गठन से लेकर उसके वाद-विवाद तक, संविधान को अंगीकार करने से लेकर उसके मौजूदा चरण तक, हमने लगातार एक गतिशील और प्रगतिशील संविधान देखा है। हमने तार्किक चर्चा की है, सवाल उठाए हैं, बहस की है और इसमें बदलाव किए हैं। मुझे विश्वास है कि यह हमारी जनता और लोगों के मस्तिष्क में भी बना रहेगा।
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